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मेरा भारत
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन

चार घनाक्षरियाँ

(१) देश को प्रणाम है

हिमगिरि शीश बना, पाँव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है।
ब्रह्मचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है।
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,
ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है।
गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ,
पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है।।

(२) बच्चों के प्रति

दिल से प्रणाम करो, पढ़-लिख नाम करो,
हाथ आया काम करो, यही देश प्रेम है,
अपना भले को मानो, दुष्ट ही पराया जानो,
सबका भला ही ठानो, यही देश प्रेम है।
सदा सद-बुद्धि धरो, बुद्धि से ही युद्ध करो,
हवा-पानी शुद्ध करो, यही देश प्रेम है।
जिम्मेदारी ये हमारी, खुश रहें नर-नारी,
बचे न कोई बीमारी, यही देश प्रेम है।।


(३) समझदारी

आर्कीटेक्ट जोरदार, ठेकेदार दमदार,
अच्छे रखें किरदार, जिनमें ईमान है।
थोड़ा सा ही अंतर है, लगता है माल वही,
अच्छी नई तकनीक, भवन की जान है।
मत घबराएं कभी, बहका कोई न पाए,
वाल बांधें नौ-नौ इंची, यही फरमान है।
माल अच्छा ही लगाएं, मजबूत देश बने,
भवन भूकंपरोधी, तो ही कल्याण है।।


(४) ऐतिहासिक तथ्य

'सिन्धु' से ही 'हिन्दू' बना, कहते जिसे हैं जाति,
'हिन्दू' कोई जाति नहीं, धारा सुविचार है।
सच्चे सारे वेद-ग्रन्थ, जिनमें है रामसेतु,
सच्चे ही हैं धर्मग्रन्थ, सामने प्रमाण है।
तोड़ो नहीं रामसेतु, इसमें अथाह निधि,
कहते हैं साइंटिस्ट, कहता विज्ञान है।
उठ गया यदि देश, एक भी न होगा केश,
दिल में रहेगा क्लेश, खुद विद्वान है।।

- अम्बरीष श्रीवास्तव

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