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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

दीप जले

भेद अमा का अन्तरतम
लो जगमग दीप जले

दुर्गम पथ में सघन छाँव
यह पर्व उमंग भरा है
श्रान्त प्रतीक्षा--प्रांगण में
उत्साह नया बिखरा है
विस्मृत हो हर व्यथा
ह्रदय को नव-विश्वास मिले

भेद अमा का अन्तरतम
लो जगमग दीप जले

अवली दीपों की झिलमिल
गहरे तम को ललकारे
थिरक रहे उल्लास भरे
शत शत लोचन रतनारे
जन-मन जागा तो
अन्यायी शासक हाथ मले

भेद अमा का अन्तरतम
लो जगमग दीप जले

जटिल ग्रन्थियाँ खोलें मन की
जाए दूर हताशा
दीप स्नेह से भरे रहें
यों नित्य उजाला लाएं
गाएं गीत ज्योति के सुर में
बोझिल रैन ढले
भेद अमा का अन्तरतम,
लो जगमग दीप जले

-- गिरिजा कुलश्रेष्ठ
१ नवंबर २०१०

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