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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

दीपक की आँखों में

दीपक की आँखों में से
आँसू इतरा है
पल भर में बिखरेगा
ऐसा लगता है

कितना अपार वैभव
कितनी अपार रंगत
होता लक्ष्मी जी का
कैसा अद्भुत स्वागत
मुस्काती महल अटारी
मुँडेरें जगर मगर
कहीं भाग हँसता है
और कहीं रोता है

हर घर ज्योर्तिमय करने
जो दीप बनाता
उसके ही आँगन में
अँधियारा बसता है
बाती बन-बन कर
दिन रात जला जाता है
जीवन के दाँवों को
वही हार जाता है।

यह देख तड़प कर दीपक
आँखें भर लाता
अपने उजियारे पन पर
आँसू टपकाता
कितना बेबस लगे
खुद को धिक्कारता है
हा ! उजियारा उनको
वह दे ना पाता है

--निर्मला जोशी

१ नवंबर २०१०

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