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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

आई है दीपावली

आई है दीपावली, कर अनुपम शृंगार
छत दीवारें खिल गईं, सज गए आँगन-द्वार

सजे शहर भी गाँव भी, घर-गलियाँ -बाज़ार
शुभ दीवाली कर रही, शुभ सपने साकार

बिखरीं उज्ज्वल रश्मियाँ, लेकर दिव्य उजास
धरती उत्सव में मगन, मुदित-मुदित आकाश

दीयों ने मिल कर किया, आज सघन आलोक
वैभव यश भू का निरख, सकुचाए सुरलोक

काल कलुष का आ गया, हुआ तिमिर का नाश
प्रकट हुआ हर इक दिशा, ज्योतित शुभ्र प्रकाश

सकल सृष्टि मुसका रही, विहँसे दीप करोड़
आज अमा की रैन भी, लगे सुनहरी भोर

दीप प्रज्ज्वलित दिशि दसों, तमदल शिथिल हताश
नन्हे दीपक कर रहे, कल्मष का उपहास

मुक्त हृदय धरती हँसे, मुसकाए आकाश
व्यथा, निराशा अब कहाँ? कण-कण व्याप्त सुहास

पूर्णचंद्रमा-से लगें, मृद-दीप सब आज 
यत्र तत्र सर्वत्र है, उजियारे का राज

पूनम-रजनी से करे, अमा स्पर्धा-भान
निज छबि पर रींझे स्वयं, करे गर्व-अभिमान

दीवाली की रात को, तारे हुए उदास
नन्हे दीयों ने किया भू पर शुभ्र उजास

गाँव-नगर जगमग हुए, ख़ुशियाँ चारों ओर
प्राण-पपीहा झूमता, मन नाचे बन मोर

दीवाली पर हो गई, धरा स्वयंभू स्वर्ग
स्वतः किया दारिद्र्य ने, दुःख ने निज उत्सर्ग

हृदय प्रफुल्लित मगन है, मन आनन्द - विभोर
पुलकित - हर्षित आत्मा, सुख ही सुख चहुँओर

देव प्रसन्न, प्रसन्न हैं धरती पर इंसान
दीवाली मंगलमयी  शुभ सुखकर वरदान

- राजेन्द्र स्वर्णकार

१ नवंबर २०१०

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