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शुभ दीपावली

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फिर दिवाली आई है

मन के दीप जले फिर दिवाली आई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है

न हो छल विषाद मनों में अब
द्वेष हटा प्रेम मे हों लीन सब
बुराई का विनाश कर अच्छाई छाई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है

तिमिर मार रोशन हो जग अब
सब के मन से मिटे कालिमा अब
रावण मार रामजी ने कैसी लीला रचाई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है

उजला हो मन सब का अब
दीप जला जागो इनसान अब
सौहार्द औ प्रेम की छटा चहुँ ओर छाई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है

मन के दीप जले फिर दिवाली आई है
अमावस को हरने फिर दिवाली आई है

अरविंद चौहान
२० अक्तूबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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