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9. 8. 2007  

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अब आए बादल

प्यासी धरती बहुत दिनों से, अब आए बादल।
सारा जंगल झूम उठा है मोर हुए पागल।।

सोई नदियाँ जाग उठी हैं,
बहती इठलाती।
जलधारा बजती सितार-सी,
झूम-झूम गाती।।

हरा भरा हो गया धरा का मटमैला आँचल।
प्यासी धरती बहुत दिनों से, अब आए बादल।।

बूँदें जैसे हों जलपरियाँ,
नाचें हौले से।
इंद्रधनुष के रंग गगन के,
निकले झोले से।।

सहसा झनक उठी गोरी के पाँवों की पायल।
प्यासी धरती बहुत दिनों से, अब आए बादल।।

आसमान से बरस रहा है,
खेतों में सोना।
हर किसान ने शुरू कर दिया,
सुख सपने बोना।।

उपवन में फिर शुरू हो गई फूलों की हलचल।
प्यासी धरती बहुत दिनों से, अब आए बादल।।

-सजीवन मयंक

 

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(1 अगस्त 2007 के अंक में)

वर्षा विशेषांक में वर्षा की बौछारों से भीगी 120 रचनाओं के सचित्र संकलन
वर्षा मंगल
में प्रस्तुत हैं-

  • 50  मधुर गीत

  • 54 मोहक कविताएँ

  • 30 हरियाले हाइकु

  • 4 रसरंग ग़ज़लें

  • 1 गुदगुदी हास्य व्यंग्य की

  • 6 बौछारें क्षणिकाओं की

  • और ढेर से दमदार दोहे

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी