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पत्र व्यवहार का पता

9. 12. 2007  

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पीटर्सबर्ग में पतझर

रात दिन झलते रहे
रंगीन पत्तों से
वृक्ष वे फिर भी रहे मेरे लिए
अनजान

वे नहीं थे भोजवृक्षों
की तरह अभिजात
मानते थे वे वनस्पति की
न कोई जात
पत्तियाँ उनकी सभी
होती कनेर-गुलाब
घोर पतझर में दिलाते
फागुनी अनुदान
वृक्ष वे फिर भी रहे मेरे लिए
अनजान

उड़ रहे हैं फड़फड़ा
इतिहास-जर्जर पत्र
दिख रही पतझार की
आवारगी सर्वत्र
डूबता दिन चांद गहना
चीड़ वन के पार
लडकियों के
सुर्ख गालों की तरह अम्लान
वृक्ष वे फिर भी रहे मेरे लिए
अनजान

-- डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र

 

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

नई हवा में-

हाइकु में-

पिछले सप्ताह
1 दिसंबर 2007 के अंक में

अंजुमन में-
नीरज गोस्वामी

कविताओं में-
अविनाश वाचस्पति

गीतों में-
अमरनाथ श्रीवास्तव

क्षणिकाओं में-
डॉ. अमिता तिवारी

दोहों में-
मनोहर शर्मा माया

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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