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						चूहा झाँक 
						रहा हाँडी में  | 
                      			 
                    
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						चूहा झाँक रहा  
						हाँडी में, लेकिन पाई 
						सिर्फ हताशा 
						 
						मेहनतकश के हाथ हमेशा  
						रहते हैं क्यों खाली-खाली 
						मोटी तोंदों के महलों में 
						क्यों बसंत लाता खुशहाली 
						 
						ऊँची कुर्सीवाले  
						पाते अपने मुँह में 
						सदा बताशा 
						 
						भरी तिजोरी फिर भी भूखे 
						वैभवशाली आश्रमवाले  
						मुँह में राम बगल में छूरी  
						धवल वसन अंतर्मन काले 
						 
						करा रहा या  
						'सलिल' कर रहा ऊपरवाला 
						मुफ्त तमाशा 
						 
						अँधियारे से सूरज उगता 
						सूरज दे जाता अँधियारा 
						गीत बुन रहे हैं सन्नाटा, 
						सन्नाटा हँस गीत गुँजाता  
						 
						ऊँच-नीच में  
						पलता नाता तोल तराजू 
						तोला-माशा 
						 
						- संजीव सलिल |  
                     
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