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अनुभूति में आलम खुर्शीद की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपने पिछले सफ़र
जब भी फसलों को
सुलगती रेत पे

अंजुमन में-
उठाए संग खड़े हैं
जब खुली आँखें
मानूस कुछ ज़रूर है
याद करते हो मुझे
सियाहियों को निगलता हुआ

 

 

उठाए संग खड़े हैं

उठाए संग खड़े हैं सभी समर के लिए
दुआएँ खैर भी माँगे कोई शज़र के लिए

हमेशा घर का अंधेरा डराने लगता है
मैं जब चिराग जलाता हूँ रहगुज़र के लिए

ख़याल आता है मंज़िल के पास आते ही
कि कूच करना है इक दूसरे सफ़र के लिए

कतार बाँधे हुए, टकटकी लगाए हुए
खड़े हैं आज भी कुछ लोग इक नज़र के लिए

वहाँ भी अहले-हुनर सर झुकाए बैठे हैं
जहाँ पे कद्र नहीं इक ज़रा हुनर के लिए

तमाम रात कहाँ यों भी नींद आती है
मुझे तो सोना है इक ख़्वाबे-मुख्तसर के लिए

हम अपने आगे पशीमान तो नहीं 'आलम'
हमें कुबूल है रुसवाई उम्र भर के लिए।

जून २००८

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