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मौत ज़िंदगी पर भारी है

अंजुमन में-
घर में बैठे रहे
तेरी ज़िद
धूल को चंदन
बागों में

सिमटने की हकीकत

 

 

  मौत ज़िन्दगी

मौत ज़िन्दगी पर भारी है,
पर क्या करिये लाचारी है।

छीन-झपट कर, लूट- कपट कर,
बचे रहो तो हुशियारी है।

भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।

परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बग़ावत सरकारी है।

सुख को कुतर गए हैं चूहे,
जीवन टूटी अलमारी है।

१५ जून २००९

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