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अनुभूति में चंद्रभान भारद्वाज की रचनाएँ -

नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह

अंजुमन में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी

रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में

संकलन में- होली पर

  तालाब में दादुर

कभी सूखे हुए तालाब में दादुर नही आते,
सड़ा हो बीज तो उस बीज में अंकुर नही आते।

कला की साधना में उम्र सारी बीत जाती है,
हवा के फूँकने से बाँसुरी में सुर नहीं आते।

भले हो उर्वरा धरती भले अनुकूल मौसम हो,
करेले की लताओं पर कभी माधुर नहीं आते।

अगर इक पाँव को बैसाखियों की हो गई आदत,
थिरकने के लिए उस पाँव में नूपुर नहीं आते।

यहाँ उस आदमी को कामयाबी मिल नहीं सकती,
जिसे इक झूठ सच में ढालने के गुर नहीं आते।

बचाने के लिए इज़्ज़त कभी धनिया नहीं मरती,
अगर उस रात घर में गाँव के ठाकुर नहीं आते।

हमेशा उर्स पर वह मारते रहते हमें ताना,
कि 'भारद्वाज' तुम अजमेर या जयपुर नहीं आते।

२५ मई २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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