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अनुभूति में गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब विदूषक
कुछ चुनिंदा शेर
चाँद को छू लो
चाँद तारों पर
तीन मुक्तक
दीवार में दरार
पृष्ठ सारा
मुहब्बत से देहरी
शिव लगे सुंदर लगे
श्रीराम बोलना
हक़ीक़त है
हिंदी की ग़जल

मुक्तक में-

 

तीन मुक्तक

एक
शायर अदीब है, तहज़ीब है, मैख़ाना है
वो गिरे दर्जे के समझौतों का मोहताज नहीं।
जिसके आँगन में महकते हों गम़ ज़माने के
ऐसा शायर किसी भगवान का मोहताज नहीं।


दो
साधनाएँ फ़र्श पर बिख़री पड़ी हैं
बांसुरी के गाँव में गोली चली है।
रक्तरंजित पुष्प, टूटे शंख, घायल प्रार्थनाएँ
क्या इसी का नाम इक्कीसवीं सदी है।


तीन
राजनीति रह गई सिमट कर 'अम्मा' और 'हवाला' तक
मज़हब के झगड़े पहुँचे हैं घर से अल्लाताला तक।
अहले-अदब की परिभाषाएँ 'पंकज' कुछ ऐसी बदलीं
शेरों-सुख़न की दुनिया पहुँची 'गा़लिब' से 'खंडाला' तक।

१ फरवरी २००५

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