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अनुभूति में जितेन्द्र जौहर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इतनी ऊँची उड़ान
खुशामद का मेरे होंठों पे
ठहरा हुआ जलाशय-सा
दौर-ए-हाज़िर

 

इतनी ऊँची उड़ान

इतनी ऊँची उड़ान तक पहुँचे!
ज़मीं से आसमान तक पहुँचे!

ज़रा सम्मान क्या मिला तुमको,
यार! तुम तो गुमान तक पहुँचे!

हाथ गीता - क़ुरान पर लेकिन,
होंठ झूठे बयान तक पहुँचे!

माल पहुँचा है, मालदारों तक,
सिर्फ़ वादे जहान तक पहुँचे।

गिद्ध सब उड़ गये दरख़्तों से,
तीर ज्यों ही कमान तक पहुँचे।

ये सियासत की देन है, टुच्चे-
साइकिल से विमान तक पहुँचे!

जब अँधेरों पे फ़िदा हो सूरज,
रात कैसे विहान तक पहुँचे?

मार हुंकार प्रलय के स्वर में,
पीर सत्ता के कान तक पहुँचे।

१३ दिसंबर २०१०

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