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अनुभूति में मुसव्विर रहमान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इक अधूरी सी मुलाकात
कैसा अंधेर है
कौन सा लम्हा था
चमक रही हैं आँखें
जो हर इक बात पर

 

चमक रही हैं आँखें

चमक रही हैं आँखें जैसे जुगनू बैठा है
प्यार की धूनी दिल में रमाए साधू बैठा है

उसके हुस्न की ताबानी में डूब गई हर आँख
हर दिल में उसके लहजे का जादू बैठा है

जिस्मो-जाँ की जुंबिश जाने कब की ख़त्म हुई
मेरी हथेली पर बरसों से बिच्छू बैठा है

मेरी अर्ज़ी अफ़सर की टेबल तक कैसे जाए
पेपरवेट नहीं, फ़ाइल पर बाबू बैठा है

फ़र्क़ नहीं कुछ किसी हाथ में हो सत्ता का डमरू
देश तो है इक भालू बाँध के घुंघरू बैठा है

बूढ़े बाबा का चेहरा है क़िस्सा और कहानी
एक पोटली में वो बाँधे ख़ुश्बू बैठा है

सोच समझकर बरत रहा हूँ मैं अल्फ़ाज़ ‘मुसव्विर’
जब से मेरा बेटा मेरे बाज़ू बैठा है

१३ जनवरी २०१४

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