अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संजय ग्रोवर की रचनाएँ

नई ग़ज़लें--
जुबां तक बात
झूठ पहनकर
वाह रे वाह
सूरज

अंजुमन में
असलियत के साथ
आज मुझे
आ जाएँगे
इनको बुरा लगा
उसको मैं अच्छा लगता था
उसे अपने दिल में
क्यों करते हैं मेहनत
किस्सा नहीं हू
कोई बात हुई
ग़ज़लों में रंग
जब भी लोगों से मिलता हूँ
जो गया
डर में था
तितलियाँ
तीर छूटा
तुम देखना
तौबा तौबा
दर्द को इतना जिया
दासी बना के मारा
दिन हैं क्या बदलाव के
पागलों की इस कदर
बह गया मैं
बाबा
बोलता बिलकुल नहीं था
भेद क्या बाकी बचा है
मोहरा अफवाहें फैलाकर
मौत की वीरानियों में
मंज़िलों की खोज में
यह जुदा इक मसअला है
रोज़ का उसका
लड़केवाले लड़कीवाले
लोग कैसे ज़मीं पे
सच कहता हूँ
सोचना
हो गए सब कायदे

महिला दिवस पर विशेष
स्त्री थी कि हँस रही थी
हमारी किताबों में हमारी औरतें

  यह जुदा इक मसअला है

यह जुदा इक मसअला है आप ही सुलझाइए
हर आईने में अलग चेहरा दिखे, समझाइए

पत्थरों को भी जो आईनों के माफिक तोड़ दे
इतनी क़ुव्वत रख सके इक ऐसा पत्थर लाइए

पत्थरों की क्या ख़ता उनका तो पत्थर नाम है
आईने भी पत्थरों से गिर रहे, बतलाइए

पत्थरों की मार से महफूज़ रहने के लिए
मंदिरों में पत्थर अपने नाम के लगवाइए

हैसियत देखे बिना बेख़ौफ़ पत्थर मारना
आपके बस का नहीं, बच्चा कोई बुलवाइए

आईने में सज रहे हैं ख्वाब नाजु़क उम्र के
असलियत के पत्थरों से उनको मत चटखाइए

२५ जनवरी २०१०

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter