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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अर्जी दी तो
किसी रहबर का
जब से बाजार
जो माँगो
शाम ढले

छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत

अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
लो चुप्पी ली साध

संकलन में-
होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

 

किसी रहबर का

किसी रहबर का मज़लूमों से कोई बास्ता, कब था
झुलसते पांवों का तक़रीर में भी तज़्किरा, कब था

हमें ऐ वक़्त ! अपने आज में जीना तो आ जाता
मगर कल और कल के दरमियां में फासला कब था

कोई कारण नहीं था रौशनी के दूर रहने का
अंधेरी कोठरी में रौशनी को रास्ता कब था

ज़माना है, ये आदम के ज़माने से ही ऐसा है
बुरा कहते हो जिसको तुम,कहो तो ये भला कब था

बहुत कुछ पूछना था और बतलाना बहुत कुछ था
"ख़याल" उस शख़्स से लेकिन हमारा राब्ता कब था

१ मई २०२२

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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