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अनुभूति में डॉ. सुश्री शरद सिंह की रचनाएँ-

गीतों में-
आखिर क्यों
कहना और क्या है
जाड़े की है धूप उदासी

तिनकों के ढेर मे
रेत देती है गवाही

अंजुमन में-
एक लड़की चार गजलें

संकलन में-
अमलतास-
अमलसात खिलने दो

 

तिनकों के ढेर में

जाड़े की धूप मधुमक्खी के छत्ते
गठरी में बाँधे ज्यों
कुछ कपड़े लत्ते

बचपन के मंदिर की मूरत ही बदल गई
पकड़ी हर आस्था आते ही फिसल गई
सील गए आँसू से
धीरज के गत्ते

कुछ काले कुछ पीले असगुनमय सगुन धरे
हर दिन की आँखों में अनबूझे सपन भरे
दुख हम पर गुजरे हैं
पंजे पर सत्ते

मलबे से बीनकर मुट्ठी भर चिथड़े
पंछी से बच्चों के जीवन ही बिगड़े
थकी थकी पाँखें ज्यों
मुरझाए पत्ते

सुलगी हैं इच्छाएँ तिनकों के ढेर में
बँधुआ-सी जिंदगी छलिया के फेर में
काहे की मजदूरी
काहे के भत्ते

१३ फरवरी २०१२

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