अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. शिवशंकर मिश्र की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
क्यों कभी
दिन बुरे आते हैं
माफ कर दो, भूल जाओ
हारते ही आए

 

माफ कर दो, भूल जाओ

माफ कर दो, भूल जाओ, गम करो, गुस्सा करो
बेवफ़ा तो बेवफ़ा है, बेवफ़ा का क्या करो।

लोकशाही की अदाएं कम नहीं कातिल हैं अब
सर झुकाकर साहिबे-दीवान को सिजदा करो।

क्या नहीं जो हो रहा है, क्या बचा बाक़ी है अब
जो सुनो, रोया करो और देखो तो तड़पा करो।

पेड़ इतने और सब इतनी तरह के एक साथ
भेड़ियों से तो नहीं जाकर सबक् मांगा करो।

जिंदगी में कुछ सचाई, प्यार भी कुछ हो जरा
याद रह जाए किसी को, काम कुछ ऐसा करो।

आज फिर हम पर जो बीती, ’मिशरा‘ क्या बतलाएं हम
बच्चे ऐसे तो किसी के रब नहीं पैदा करो।

२७ अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter