अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुल्तान अहमद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इन कूओं के पानी से
इसमें मानी क्या
गायब
तेरे माथे पे सलवट

वो आग फेंक गये

अंजुमन में-
गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले

 

 

मिले न मिले

सफर में रास्ता देखा हुआ मिले, न मिले,
चलेंगे हम तो हमें रहनुमा मिले, न मिले।

बजा नहीं है शिकायत उमस की घर बैठे,
निकलके घर से भी ताज़ा हवा मिले, न मिले।

बनाके अपने ही हाथों को अपनी पतवारें,
इन आंधियों में चलें, नाखुदा मिले, न मिले।

सवाल दिल में उठेंगे तो हम उठाएँगे,
जवाब हमको किसी से बजा मिले, न मिले।

चढ़ाके चाक पे हम तो उन्हें बनायेंगे,
जलें चराग तो उसका सिला मिले, न मिले।

हरेक शख्स मिले बनके आदमी जैसा,
तो गम नहीं जो कोई देवता मिले, न मिले।

८ दिसंबर २००२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter