अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में उमा प्रसाद लोधी की रचनाएँ—

अंजुमन में-
आदर्शों की अर्थी
गीत में साँस
लज्जावती लजाई
सूरज तेरा ताप

हमने देखे हैं

 

आदर्शों की अर्थी

आदर्शों की अर्थी के सिरहाने बैठे हैं
मर्यादाएँ तोड़ सभी शरमाने बैठे हैं

रोना है तो तुम भी रो लो मौका अच्छा है
प्याज लगाकर हम आँसू बरसाने बैठे हैं

बहुत बढ़ चुकी हमसे सबके द्वारे की शोभा,
खिल-खिलकर थक गये आज मुरझाने बैठे हैं

आग लगाकर इंसानों की प्यारी बस्ती में
सरकारी दमकल से उसे बुझाने बैठे हैं

कद, काठी, क्षमता में सब हो केवल मतदाता
जाति धर्म के हम लेकर पैमाने बैठे हैं

मानव का बाजार भाव क्यों बढ़ता जाता है
प्रश्न यही उलझाकर हम सुलझाने बैठे हैं

मत पूछो क्यों लिये कटोरा जनता द्वार खड़ी
हम सुराज का अर्थ तुम्हें समझाने बैठे हैं

१ नवंबर २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter