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अनुभूति में वेदप्रकाश अमिताभ की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अर्चना करता रहा मैं
आग अपनी
बहुत प्यासे मरुस्थल
बहुत-बहुत मन था
वेदना जब से सयानी हो गई

 

 

  अर्चना करता रहा मैं

अर्चना करता रहा मैं आपकी
वर नहीं, सौग़ात पाई शाप की

उरवशी प्रतिमा को तन्मय पूजना
भावना इसमें कहाँ है पाप की?

वासना के हाथ से उठता नहीं
नेह में गुरुता निहित शिव-चाप की

आरती, घड़ियाल शंखों के बिना
मैंने यह आराधना चुपचाप की

कामना के हाथ रीते हों तो हों
गंध तक मन में न पश्चाताप की!

३ अगस्त २००९

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