अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजय प्रताप आँसू की रचनाएँ-

नयी रचनाएँ-
कुछ कमाल होने दो
निर्भया के बाद भी
पंख फड़फड़ाता हूँ
वक्त सा हुनर दे दो
सवाल उठाती है जिंदगी

अंजुमन में-
कुछ साजिशों से जंग है
ग़ज़ल में दर्द की तासीर
सब्र उनका भी
सर बुलन्द कर गया
हर गाम पर

 

कुछ साजिशों से जंग है

कुछ साजिशों से जंग है डटकर निभाते जाइए
कुछ नहीं तो हाशिए पर घर बनाते जाइए

उनके हक़ में फैसले लेते रहेंगे हुक्मराँ
आप अपना फलसफ़ा कहते सुनाते जाइए

हादसों के काफ़िले और उम्र का लम्बा सफ़र
ज़िन्दगी कट जाएगी कुछ गुनगुनाते जाइए

फ़र्ज का परचम यक़ीनन कुछ बुलंदी पाएगा
ज़ाहिदों के जख्.म पर मरहम लगाते जाइए

कौन कहता है भगीरथ आ नहीं सकता यहाँ
प्यार की गंगा को तो भू पर बहाते जाइए

२४ नवंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter