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अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली

 

जाम खाली

जाम खाली, जमात पीने की।
सागरे दर्द, बात जीने की।

टीसते जख्म़ के नमूनों से,
आलमारी भरी है सीने की।

हाथ अपने सम्भाल रखी है,
आँधियों ने कमां सफ़ीने की।

खत्म राशन, उधार बाकी है।
आखिरी डेट है महीने की।

भूख भारी 'विमल` सबूरी पर,
दब गई दास्ता पसीने की।

१२ जुलाई २०१०

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