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आपस में लड़कर
काल की तेज़ धारा
देखे दुनिया जहान
पल निकल जाएँगे

 

पल निकल जाएँगे

देखना हाथ से पल निकल जाएँगे
रोशनी को अंधेरे निगल जाएँगे।

मीठे रिश्तों में कडवाहटें घुल गई
आज हैं दोस्त जो कल बदल जाएँगे।

दाढ़ में लग गया आदमी का लहू
भेड़िये गाँव में फिर से कल आएँगे।

मंत्र नफ़रत के हैं, द्वेष की आरती
यों हवन मत करो, हाथ जल जाएँगे।

ताप संताप बढ़ता गया गर यों ही
मोम के जिस्म सारे पिघल जाएँगे।

२० जुलाई २००९

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