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अनुभूति में अभिज्ञात की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ

अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते

कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया

आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना

गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास

तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे

संकलन में -
प्रेमगीत-
आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-
धूप 

 

तुमसे
(पिता की ओर से बेटी के लिए)

मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारी आँखों से वह दुनिया एक बार फिर
जिसे मैं छोड़ आया था काफी पीछे

मैं तुम्हारे सपनों में पैठना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ तुम्हारी हर प्रतिक्रिया का साझेदार बनना

इन सबसे बढ़कर मैं चाहता हूँ
इस नई दुनिया की नई संवेदना का स्वाद
तुम्हारे मार्फत मुझ तक पहुँचे

मुझे तुम्हें कुछ सीखाना नहीं सीखना है

मुझे सीखनी है नई भाषा और नई संवेदना की लय
मुझे सीखनी है एक और मातृभाषा तुम्हारे व्याकरण में

मैं चाहता हूँ तुम्हारी मार्फ़त
भूसे में दबा वह आम खोजना
जो मैंने अपने बचपन में दबा कर चला आया था
अपने गाँव से शहर

मैं जानता हूँ कि तुम केवल तुम ही खोज सकती हो
उसकी गंध के सहारे जो मुझ में तो अब खो चुकी है पर
तुममें ज़रूर कहीं न कहीं अभी होगी सुरक्षित

मैं चाहता हूँ उन किस्सों को याद करना
किस्सों से दृश्य और धुन चुनना
जो मेरी दादी ने सुनाए थे मुझे
पर तुम तक नहीं पहुँची उसकी कोई आँच
मैं चाहता हूँ तुम भी उससे तपो
मैं चाहता हूँ अपने गाँव की गांगी नदी के पानी में
फिर से धींगा मस्ती करना तुम्हारे माध्यम से
जहाँ तुम कभी नहीं गई।

मैं चाहता हूँ तुम मेरे गाँव एक बार ज़रूर जाओ
यकीन है अमराई तुम्हें भी पहचान लेगी
मेरे बिन बताए और तुम भी बिना किसी से पूछे
पहुँच जाओगी उन सभी जगहों पर जहाँ मैंने
अपना बचपन खोया है और जिसे खोजना तुम्हें भी अच्छा लगेगा।

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