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अनुभूति में अम्बिका दत्त की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए

 

असरात

घोड़े से ज्यादा सुन्दर हैं
उसके खुर
और सुहावने (?)
उसकी टापों के स्वर

घुड़सवारों के पाँवों में
बिना आवाज का जूता है
हाथों में एक सुनहरा हण्टर
वे आ गए
तुम्हें पता ही नहीं चला
उनका आना किसी को दिखाई नहीं देता

उनके आने की आहट गूँज रही है
प्रार्थना के स्वरों में
एक शैतानी जिद की तरह
उनकी बोलियाँ-बाजारों में हैं
नीलामियों-मण्डियों में
उनके भाव-संस्कृति में समाचारों की तरह हैं
न्याय में विचारों की तरह हैं
युद्ध में परामर्श
समानता की स्थापनाओं में
मानवाधिकारों की परिभाषा में

घोड़े से ज्यादा सुन्दर हैं
उसके खुर
और सुहावने (?)
उसकी टापों के स्वर।

२३ सितंबर २०१३

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