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अनुभूति में बालकवि बैरागी की रचनाएँ-

गीतों में-
अपनी गंध नहीं बेचूँगा
झर गए पात
शीश झुकाना क्या जाने
हैं करोड़ों सूर्य

संकलन में
मेरा भारत- सारा देश हमारा

 

झर गये पात

बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी

झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी


झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
"वृन्दावन" की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की "मृगनयनी"
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?

२० फरवरी २०१२

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