अनुभूति में
भास्कर चौधरी
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चुनाव (दो
कविताएँ)
जय बोलिये स्त्री विमर्श की
(तीन कविताएँ)
बुट्टू
छंदमुक्त में-
इन दिनों
ईमानदार थे पिता
तीन छोटी कविताएँ
पिता का सफर
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बुट्टु
बड़ी हो गई बुट्टु
किताबों से घिर गई बुट्टु
बुट्टु नाचना भूल गई
नाच-नाच कर गाना भूल गई
गुड़िया-गुड्डु भूल गई
बुट्टु को मेरा साथ भला नहीं लगता
माँ के लिए बुट्टु के पास वक्त नहीं
घर के कामों में रुचि नहीं
सहेलियों से घिर गई बुट्टु
बड़ी हो गई बुट्टु
किताबों से घिर गई बुट्टु
९ जून २०१४
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