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अनुभूति में
देवेन्द्र रिणवा की रचनाएँ-
कविताओं में-
और शब्द भी हैं
कुरेदा नहीं जाता जब अलाव
दुहरा हुआ जाता है पेड़
परछाँई
बीमार
यह जो तरल है
याद नहीं आता
हाँ नहीं
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दुहरा हुआ
जाता है पेड़
अपनी जड़ों को फैलाते हुए
एक पेड़
ज़िन्दा होता है
कागज़ों की तह में
तलवार की तरह
चलती है उस पर कलम की नोंक
पीता है स्याही का ज़हर
और उगलता है
इतिहास व भविष्य की हलचल
कविताएँ
और अभिव्यक्तियों का समुद्र
बच्चे जब लिखते हैं
ककहरा कागज़ पर
गुदगुदी से
दुहरा हुआ जाता है पेड़
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