अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. जितेन्द्र वशिष्ठ
की रचनाएँ -

अंजुमन में-
आज फिर
त्योहारों के आने पर
बच्चों का दीवार पे लिखना
बस यों ही

  त्योहारों के आने पर

त्योहारों के आने पर अब खौफ़-सा लगता है!
उनके पास बुलाने पर अब खौफ़-सा लगता है!

बहुत निभाए वादे हमने साथ निभाने के -
खुद से ही मिल जाने पर अब खौफ़-सा लगता है!

खुली सड़क पर रातों-रातों आवारा घूमे -
अपनी आहट पाने पर अब खौफ़-सा लगता है!

जब से उनकी जेब भरी है सोने-चाँदी से -
उनके घर तक जाने पर अब खौफ़-सा लगता है!

जब से हमको पता चला हम मोहरें है उनके -
उनके आँख हिलाने पर अब खौफ़-सा लगता है!

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter