अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मथुरा कलौनी की रचनाएँ

कविताओं में—
आतंकवादी की माशूका
एक पल
कबतक
तुम्‍हारे नयन
नया युग
पुरुष का संदेश नारी के नाम
रस्में
वे दिन

  वे दिन

वर्तमान सदा रहा है बोर
दैनिक चिंताओं और परेशानियों का शोर
कितना मधुर होता है अतीत
वर्तमान जब होता है व्यतीत।

वह स्कूल औ' कॉलेज के दिन
चिंता परीक्षाओं की, किताबों की घुटन
अनुशासन में बँधा तब का जीवन
आज लगता कितना स्वच्छंद

वह बाप की डपट औ' माँ की फटकार
पहली सिगरेट सुलगाते जब चाचा ने देखा
वह काफ़ी हाउस के झगड़े तोड़फोड़
खींच रहे हैं होठों में स्मित रेखा

एक के बाद एक आ रहे हैं
बीते दिन पकड़कर यादों की डोर
और अपेक्षा में बैठा हूँ मैं
कब जाएगा वर्तमान अतीत की ओर

9 मई 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter