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अनुभूति में राघवेंद्र तिवारी की
रचनाएँ-

कविताओं में-
चिड़िया
चुनाव
पेड़ का जंगल होना
सुबह

 

सुबह (दो कविताएँ)

किसी अनावश्यक चेष्टा की तरह
प्रकट हो जाती है
हाड़ों का तकिया लगा
हाँफना लगते हैं गुलाब
किसी मरियल कुत्ते-सी
घाव खुजलाती
निकलती है वह
पड़ोसी की पौर से
और इतिहास में
हो जाती है दर्ज
अमुक तारीख़ की
फलाँ सुबह

बड़ी मुश्किल से
थैंगड़ों में निकलता
प्रकाश
वापस लौटती हवा
मुठ्ठियाँ भींचे
आँखों को अखबार
जैसा फैलाए
मेरे बाएँ ओर की सड़क
उसे बुहारने वाली
रामकली के चेहरे जितना
साफ़ हो गई है
मेरा ख़्याल है
सुबह हो गई है।

२४ नवंबर २०१४ २२ सितंबर २००८

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