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अनुभूति में राजन स्वामी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अधूरेपन का मसला
धूप से तप रहे जंगल
बातें

बुझा बुझा-सा है
मुश्किल है

छंदमुक्त में-
चश्मा
जब पिताजी थे
नन्हीं बिटिया की डायरी से

 

बुझा बुझा सा है

बुझा- बुझा सा है मेरे नसीब-सा मौसम,
लगे है इसलिए शायद अजीब-सा मौसम।

चली हैं आरियाँ जब से जवां दरख्त़ों पर,
सहम गया है किसी अंदलीब-सा मौसम।

जहाँ से बेख़बर मौसम को देखते हो जब,
लगे है उस घड़ी हमको रक़ीब-सा मौसम।

हरेक शख्स़ ने क़ुदरत को इस क़दर लूटा,
कभी अमीर था, अब है गऱीब-सा मौसम।

गुलों से दोस्ती, यारी करो दरख्त़ों से,
मिलेगा तुमसे गले फिर हबीब-सा मौसम।

१० मई २०१०

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