अनुभूति में
सतीश सागर की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
घाव
परिश्रम
समुद्र
सही सोच
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सही सोच
यह सही है
कि
बोलने से पहले उस पर
सोचना नितांत आवश्यक है
लेकिन
कई बार ऐसा होता है कि
चाहे आप कितना भी
सोच-समझकर बोलें
लेकिन
सब कुछ गड्ड-मड्ड
हो जाता है
यह सब आखिर
क्यों हो जाता है कि
जब हम बोलते हैं
तो वह चीखना होता है
और वे बोलते हैं तो
वह अमृतवाणी हो जाता है
यह सिर्फ घटना नहीं
एक साजिश है
और
आप समझते हैं कि आप
साजिश को आसानी से
तोड़ देंगे
लेकिन ऐसा नहीं होता
मेरे दोस्त
चूँकि
साजिश को खत्म करने का
साफ-साफ मतलब है
सही सोच को
साफ तौर पर समझना
नहीं तो ऐसे ही चलता रहेगा
और
एक स्थिति के बाद
यह सब नासूर बन जाएगा
और तब कुछ हो पाना
नामुमकिन होगा!
१ दिसंबर २०१४
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