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अनुभूति में वसु मालवीय की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ सपने

अंजुमन में-
कठपुतली

 

कठपुतली

वो तो कठपुतली है बाबू
खु.द अपनी चुगली है बाबू

तुम उसको ठंडा कहते हो
कितने दिन उबली है बाबू

तुम शौकीन गोश्त के होगे
लेकिन वो दुबली है बाबू

सबसे पहले वो कटती है
डिब्बे की सुतली है बाबू

उसने अपना जिस्म दिखाया
तब सिल्वर जुबली है बाबू ।।

१ अगस्त २००१

 

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