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अनुभूति में विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ—

नयी रचनाओं में-
एक कविता इस तरह
झूठ मूठ समय के बीच
तुम्हारी हँसी से
तुम्हारी वजह से ही
भोपाल में बारिश
यदि तुम ईश्वर बनना चाहते हो

छंदमुक्त में-
आखर रह जाएँगे
तुम्हारे लिये एक कविता
तुमसे (एक)
तुमसे (दो)
देह की भाषा
बात यहीं खत्म नहीं होती

 

तुम्हारी हँसी से

तुम्हारी हँसी से
अँधेरे की देह टूटती है
पाखी उड़ते हैं अपने घोंसले से निकल
दूर देश चारे की तलाश में

पेड़ की पत्तियाँ हिलती हैं
हवा का एक झोंका खींच ले जाता
छूट गए अपने देश में

तुम हँसो ऐसे ही
कि तुम्हारे हँसने से
फूल-सी यह पृथ्वी
साबुत और सुरक्षित महसूस करती है।

१ मई २०१७

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