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कौन कहता है
ग़म गुसारों की बात
दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
नाज़बरदारियाँ नहीं होतीं
मेरे हाथों की लकीरों में

वो एक चाँद-सा चेहरा

अंजुमन में-
अपनी नज़र से
किस तरह
जो भी मिलता है
प्यार के काबिल नहीं
मेरे वजूद में
रंगों की बौछार

 

वो एक चाँद-सा चेहरा

वो एक चाँद-सा चेहरा जो मेरे ध्यान में है
उसी के साये की हलचल मेरे मकान में है

मैं जिसकी याद में खोया हुआ-सा रहता हूँ
वो मेरी रूह में है और मेरी जान में है

वो जिसकी रौशनी से क़ायनात है जगमग
उसी के नूर का चर्चा तो कुल जहान में है

तुझे तलाश है जिस शय की मेरे पास कहाँ
तू जा के देख वो बाज़ार में दुकान में है

चला के देख ले बेशक तू मेरे सीने पर
वो तीर आख़िरी जो भी तेरी कमान में है

ये ज़िन्दगी है इसे ‘चाँद’, सहल मत समझो
हरेक साँस यहाँ गहरे इम्तिहान में है।

२२ सितंबर २००८

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