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अनुभूति में जैनन प्रसाद की रचनाएँ— 

छंदमुक्त में—
एक नारी
कैसे भुलाऊँ तुम्हें
खड़ाऊँ
गुरु दक्षिणा
चीर हरण
मछली
मेरा मन
रावण या राम

हास्य व्यंग्य में—
उठो जी
एक नेता
झूठ
बैठ जाओ

  रावण या राम

रामायण के पन्नों में
रावण को देख कर
काँप उठा मेरा मन
अपने अंतर में झाँक कर
हमारे मन के सिंहासन पर
भी बैठा है
एक रावण! छिपकर
ईर्ष्या द्वेष और जलन का
आभूषण पहन कर
बाहर भूसुर! अंदर असुर!
सीता हरण को बैठा है यह चतुर
आज नहीं बचेगी! तब भी नहीं बची
लक्ष्मण रेखा! तो कब की मिट चुकी
रेखा आज भी कुछ अंशों में
आ रही है नज़र
पर क्या करें! आज के रावण पर
उसका नहीं कोई असर
वह रावण बाहर था
यह बैठा अंदर
इसे बाहर करना संभव होगा
तुम्हें स्वयं से लड़ कर
नित प्रति होता है यहाँ
अबला सीता का हरण
जो डर कर ढूँढती है
श्रीराम की शरण
इस घट रावण का तुम
न करो तिरस्कार
बनो सदाचारी! करो
इस रावण का उद्धार
सच है! राम से ही होगा
रावण का संहार
तो! उस राम को तुम अपने
अंतर में लेने दो अवतार
और लो इंद्रियों को जीत
बनो दशरथ मतिधीर
तब प्रगटेगा श्रीराम
हाथों में लेकर तीर
तीर! जिससे
अंतर के रावण को मारो
विद्यमान हो जाएगा 'श्रीराम'!
सत्कर्म को धारो
याद रहे! रावण और राम
दोनों है तुम्हारे अंदर
स्वर्ण दंभ की लंका गढ़ लो
या पवित्र वह अवध नगर
अ! वध!
अवध! जहाँ न हो किसी का वध
तुम वह नगर बनाओ
ईर्ष्या जलन और द्वेष को अब दूर भगाओ
करो चरित्र निर्माण
गुण अवगुण चित धर कर
रामायण के पन्नों में
रावण को देख कर

१ फरवरी २००६

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