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अनुभूति में ललित मोहन जोशी की
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छंदमुक्त में—
स्वयमेव
नौकुचिया ताल के छोर से
हीथ्रो टर्मिनल थ्री
साउथॉल
जब ये जीवन प्रारंभ होता है

 

जब ये जीवन प्रारंभ होता है

प्रत्येक जीवन एक मृत्यु से प्रारंभ होता है
मृत्यु हमारी कल्पनाओं की
हमारे स्वप्नों की
ये उन गहन अनुभूतियों से प्रारंभ होता है
जो आज तक हमसे परे थीं
जीवन प्रारंभ होता है
जब एक भावाग्निकुंड
हमारे अंतर में धू–धू कर जल रहा होता है
यह प्रारंभ होता है
जब इस अग्निकुंड का दाह
हमारे अंतकरण तक ही सीमित होता है
पर कभी भी जीवन
इस दाह की चीख से प्रारंभ नहीं होता
जीवन एक संपूर्ण मौन से प्रारंभ होता है
जब हमारी समस्त प्रतिक्रियाएं
मृत हो गई हो
हमारा सर्वस्व मृत हो गया हो
और अंतकरण ही शेष रह गया हो

१६ फरवरी २००५

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