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अनुभूति में पराशर गौड़ की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह

हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार

संकलन में-
नया साल- नूतन वर्ष

सैनिक का आग्रह

रोको मत मेरा पथ
मुझको जाना है प्रिये
मुझे जाने दो
है किसीका ऋण मुझ पर
उस ऋण को आज चुकाने दो 

उठो बन पदमिनी चूड़ावत
हँसते हँसते विदा करो
सनद रहेगी ये बेला
प्रिये! इस पल को मत चुकने दो

अघरो पर मुस्कान
नयनो में नीर न हो
ये सौगात रहेगी संग मेरे
प्रिये इसे तुम अमृत कर दो

रोको अपना ये रुदन क्रंदन
प्रिये मुझको समझो
देश है पहला प्रेम हमारा
उस प्रेम को कलंकित मत होने दो

प्रिये तुम तो हो प्रिय मेरी
तुम से भी प्रिय भारत मां है
सरहद पे दुशमन है खड़ा
माँ ने पुकारा आज मुझे है
लाओ रणरोली माथे पे लगा दो 

जीवित लौटा तो मिलेंगे
क्षितिज और अंबर की तरह
वीर गति प्राप्त हुई तो
मरूँगा एक सैनिक की तरह
आने वाली पीढी नाज करेगी तुम पर
प्रिय इस अवसर को तुम
हाथों से मत जाने दो

प्रिय रोना मत सौगंध है तुम्हें
मुस्कुराते रहना सदा
पार्थिव शरीर को मेरे तुम
करना हँसते हँसते विदा
बोलो करोगी …करोगी ना
चलते चलते मुझ से तुम
आज ये वादा कर दो

२४ मार्च २००४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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