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अनुभूति में राधेकांत दवे की
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शांति मंत्र का जाम

 

शान्ति–मंत्र का गान

प्रिय चलो आज हम
सब मिल कर के शान्ति–मंत्र का गान करे
शान्ति के सुस्थिर सागरजल का
मधुमय रस
पान करें

बहुत दिनों से
हृदय हमारा व्यथित रहा बेचैन रहा
जीवन के झंझावातों में मन पत्ते–सा उड़ता रहा
शीतलता के सागर में शाश्वती
समय तक स्नान करें
शान्ति–मंत्र का
गान करें

रची सभ्यता है
मनुष्य ने कुटिल जटिल बर्बर आधी
लड़ता रहा परस्पर हो गुमराह खोई मन की शान्ति
जीवन की आपाधापी से अब हम
सबका त्राण करें
शान्ति–मंत्र का
गान करें

शान्ति–मंत्र की
मूक ध्वनि से गूंज उठे यह जग सारा
गगनभेदी उसके निनाद से नाच उठे ब्रह्मांड पूरा
ब्रह्मांडों के पार पहुँच कर सबको
शान्ति–दान करें
शान्ति–मंत्र का
गान करे

९ सितंबर २००४

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