अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शकुंतला बहादुर की रचनाएँ-

दिशांतर में-
अपने बन जाते हैं
आकांक्षा
मुक्ति
सागर तीरे

छंदमुक्त में-
उधेड़बुन
कैलीफोर्निया में हिमपात
दूरियाँ
समय


 

 

समय

ये समय का क़ाफ़िला बढ़ता गया
और हम भी साथ में चलते गये।
एक पल को भी नहीं थकता समय
एक पल को भी नहीं रुकता समय।
हो सुखी चाहे दु:खी कोई कहीं
समय पर कुछ भी असर होता नहीं।
बात अचरज की मुझे लगती सदा
एक ही गति से समय चलता सदा।

फिर खुशी में क्यों समय
लगता है जैसे भागता।
और संकट की घड़ी में
समय जैसे रुक गया।
क्यों परीक्षा में समय की ये घड़ी
तीव्र गति से भागती है सर्वदा

और प्रतीक्षा की घड़ी लम्बी लगे
ये समय थककर है जैसे सो गया।
जन्म से ले मृत्यु तक का फ़ासला
बालपन तरुणाई और वार्धक्य बन
कब, कहाँ, कैसे फिसलता ये रहा
और हमें प्रतिपल ये छलता सा रहा।

ज़िन्दगी ये बीत जाएगी मगर
समय को इसकी कहाँ होगी ख़बर
सिन्धु क्या ये जान पाता है कभी
कौन सी उसकी लहर खोई किधर ।
समय का हर एक पल बहुमूल्य है
यदि इसे मोती समझ हम पिरो लें
ज़िन्दगी में फिर न पछताएँ कभी
सफल होकर चैन की सब साँस लें।

१५ दिसंबर २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter