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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

माहिया में-
तेरह माहिये

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए

मन की बात
मन रे कोई गीत गा
मैली हो गई धूप

मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

 

 

माहिया


चहुँ और उदासी है
बदली बरसी ना
नदिया भी प्यासी है

२.
लो बदली बरस गई
नदिया झूम उठी
धरती भी सरस गई

३.
नयनों में कजरा है
पाहुन आन खडा
अलकों में गजरा है

४.
यह कैसी रीत हुई
जो चितचोर हुआ
उससे ही प्रीत हुई

५.
कैसी मनुहार हुई
रूठे माने ना
दोनों की हार हुई

६.
कागज की नैया है
नदिया गहरी है
अनजान खिवैया है

७.
कोयलिया कूक उठी
सुर तो मीठे थे
क्यों मन में हूक उठी

८.
हम रीत न तोड़ेंगे
बचपन की यादें
सीपी में जोडेंगे


९.
पुरवा संग आए हैं
पंछी पाहुन का
संदेसा लाए हैं

१०.
हाथों की रेखा है
भावी की भाषा
अनमिट ये लेखा है

११.
पनघट पर मेले हैं
पाहुन आए ना
हम आज अकेले हैं

१२.
वो राग न पूरा है
तुम जो गाओ ना
वो गीत अधूरा है

१३.
चाँदी सी रात हुई
तारों की झिलमिल
चन्दा से बात हुई

५ नवंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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