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अनुभूति में श्रद्धा जैन की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपने हर दर्द को
कहाँ बनना सँवरना
किसी उजड़े हुए घर को

जब कभी मुझको
जैसे होती थी किसी दौर में

अंजुमन में-
अच्छी है यही खुद्दारी
अफ़साना ए उल्फ़त
कितना है दम चिराग में
किसने जाना
घटा से घिर गई बदली
गम बढ़ा दीजिए
मुश्किलें आई अगर

 

उजड़े हुए घर को

किसी उजड़े हुए घर को बसाना
कहाँ मुमकिन है फिर से दिल लगाना

यकीनन आग बुझ जाती है इक दिन
मुसलसल गर पड़े ख्वाहिश दबाना

वो उस पल आसमां को छू रहा था
ये क्या था, उसका चुपके से बुलाना

ये सच है राह में कांटे बिछे थे
हमें आया नहीं दामन बचाना

हवा में इन दिनों जो उड़ रहे हैं
ज़मीं पर लौट आएँ फिर बताना

गिरे पत्ते गवाही दे रहे हैं
कभी मौसम यहाँ भी था सुहाना

परिंदा क्यूँ उड़े अब आसमाँ में
उसे रास आ गया है क़ैदखाना

४ अप्रैल २०११

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