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इतना भास्कर देय तेज
इतनी भयावह
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इतना तम झाम
इतने मुह बाये
खडे सगे संबधी
पहले से ही
तय रास्ते
पगडडिया
और छोड देता है
वह नियन्ता
हमें सूरदास
की तरह
राह टटोलने।

२९ मार्च २०१०

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