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चाँद रात और ठंडा मौसम

कोहरा ओढ़े
छिप के आई रात
चाँद तकने

ख्वाब क्या देखा
कि सजा में तुमने
नींदें चुरा लीं

गीली सी रात
तारों की रस्सी पर
सुखाने डालूँ

चाँद का छल
रात सुबकती है
भोर जन के

ठंडा मौसम
गोद में गर्म प्याली
चाय बागान

ठंडी पोरों को
गुनगुनाती धूप
हौले से तापे

दुग्ध की धारा
काई का उबटन
प्रकृति वधू

निर्झर धारा
काई का उबटन
प्रकृति वधू

प्रीति का पन्ना
तुम चित्र बनना
मैं रेखाक्रम

महकी हवा
मौलसिरी महकी
चहका मन

मुश्किलों में वे
भूल गए क्यों मुझे
सरलता से

रात की काई
स्मृतियों का सूरज
फिर फिसला

रोज कहती
भूल जाऊँगी तुझे
रोज भूलती

वृक्ष की गोद
टहनी का पालना
पाखी चिहँके

सागर सुने
लहरों का संगीत
चाँद सुनाये

१९ अगस्त २०१३

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