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अनुभूति में भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाएँ

गौरव ग्राम में-
इसे जगाओ
गीत फरोश
चार कौवे उर्फ़ चार हौवे
जाहिल मेरे बाने
दरिंदा
महारथी
मैं क्यों लिखता हूँ
स्नेह पथ
सतपुड़ा के जंगल
सुबह हो गई है

अंजुमन में-
हँसी आ रही है

संकलन में-
वर्षा मंगल - बूँद टपकी नभ से
गुच्छे भर अमलतास - मैं क्या करूँगा

  हँसी आ रही है

हँसी आ रही है सवेरे से मुझको
कि क्या घेरते हो अंधेरे में मुझको!

बँधा है हर एक नूर मुट्ठी में मेरी
बचा कर अंधेरे के घेरे से मुझको!

करें आप अपने निबटने की चिंता
निबटना न होगा निबेरे से मुझको!

अगर आदमी से मोहब्बत न होती
तो कुछ फ़र्क पड़ता न टेरे से मुझको!

मगर आदमी से मोहब्बत है दिल से
तो क्यों फ़र्क पड़ता न टेरे से मुझको!

शिकायत नहीं क्यों कि मतलब नहीं है
न ख़ालिक न मालिक न चेरे से मुझको!
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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