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शहीदों के प्रति
बदलूँ किसे मैं (अनुगीत)
हुआ क्या रात भर (अनुगीत)

 

 शहीदों के प्रति

इन्द्रधनु की सीढ़ियों से बादलों पर चढ़ गए
पत्थरों में घाव थे यदि वज्र अंग रगड़ गए
आग थे, तूफ़ान भी आए निकट तो जल गए
जब धरा सन्तप्त देखी गल पिघलकर ढल गए

थे गरुण निर्बाध गति, पूछो न उनके हौसले
बिजलियाँ चुनकर बनाए थे उन्होंने घोंसले

देश के आगे उन्हें निज देह की परवा न थी
रोग था ऐसा लगा जिसकी कि प्राप्त दवा न थी
फूल माला कर दिये जो दहकते अंगार थे
गीत उनके एक थे - वीभत्स के - शृंगार के

जो पहनते बिच्छुओं को मान मोती की लड़ी
सांप थे उनके लिए केवल टहलने की छड़ी

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