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अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की रचनाएँ-

नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते

गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है

सफलता खोज लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा

संकलन में
नव सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल का पानी

 

चारों धाम नहीं

रिश्तों में अब आदर्शों का कोई काम नहीं
वह भी राधा नहीं रही और हम भी श्याम नहीं।
सीतायें बंदी हैं अब तक उसके महलों में
रावण से जाकर टकरायें अब वो राम नहीं।

गोपालों से मिली गोपियाँ रास रचाती है
उन्मादों के इन रिश्तों का कोई नाम नहीं।
पंचाली को जकड़ रखा पापी दुर्योधन ने
अर्जुन का पुरुषत्व दिखाता कोई काम नहीं।

झूठ इबादत, बदी बंदगी धोखा अर्चन है
काबा-काशी इसके आगे चारो धाम नहीं।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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