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अनुभूति में अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नए गीतों में-
ऐसी पछुआ हवा चली
बेचैनी का मौर
राजा रानी बैठ झरोखे
सिंहासन
 

गीतों में-
दुख का बेटा
बरस रही वस्तुएँ
बादल मत आना इस देश
मंडी चले कबीर
मैके की याद
लड़कियाँ

 

बरस रही वस्तुएँ

बरस रहीं वस्तुएँ मची हैं
भागम-भाग उठाने की।

बाबा, दादी, चाचा चाची
बड़ी बहन बूआ ताई।
अपनी-अपनी उमर जी चुके
भावुकता छोड़ो भाई।
बाज़ारों में मार-काट है
बड़ी लकीर मिटाने की।

पल्टू ने पक्का बनवाया
सोन नदी में रेल गिरी।
सरजू अब उदास बैठे हैं
मेरी माँ क्यों नहीं मरी।
बारी है अबकी दंगों में
माँ को पार लगाने की।

अमरीका से फ़ोन कभी तो
सुन लें पोते की बोली।
दो प्रेतों के राजमहल में
कैसी दीवाली होली।
क्यों जोड़ी क्यों, क्यों, क्यों जोड़ी
सुविधा राजघराने की।

१८ अगस्त २००८

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